हिंसा में शामिल नकाबपोश की पहचान के लिए पुलिस फेस रिकॉग्निशन का इस्तेमाल करेगी

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में रविवार, 5 जनवरी को हुई हिंसा में शामिल लोगों को वीडियो फुटेज की मदद से पहचाना जाएगा। सरकारी सूत्रों के मुताबिक पुलिस इस काम के लिए फेस रिकॉग्निशन सिस्टम की मदद लेगी। बता दें कि जेएनयू में कुछ नकाबपोश पुरुषों के ग्रुप द्वारा हिंसा की गई थी। यूनिवर्सिटी में हिंदू रक्षा दल नाम के ग्रुप के शामिल होने की भी पुलिस द्वारा जांच की जा रही है।


क्या है फेस रिकॉग्निशन सिस्टम


फेसियल या फेस रिकॉग्निशन सिस्टम एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो लोगों को डिजिटल इमेज या फिर किसी वीडियो फ्रेम से पहचानने में सक्षम होती है। इस सिस्टम के मदद से लोगों की पहचान उसकी फोटो, एंगल, लाइट, उम्र, चश्मा, दाढ़ी, निशान, टैटू और हेयर स्टाइल जैसी चीजों को मिलाकर कर सकते हैं। फोटो मिलाने का काम नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के डाटाबेस में मौजूद फोटो, वीडियो से की जाती है।


ऐसे काम करता है ये सिस्टम


फेस रिकॉग्निशन सिस्टम के काम करने के कई तरीके होते हैं, लेकिन चुनिंदा फेसियल फीचर्स की मदद से ये किसी इमेज का मिलान डाटाबेस में मौजूद जानकारी से करता है। इसके लिए लिए क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (CCTNS) का इस्तेमाल किया जाता है। ये सिस्टम इतना पावरफुल होता है कि सीसीटीवी द्वारा कैप्चर वीडियो से ली गई इमेज के जरिए भी किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है।


फेस रिकॉग्निशन सिस्टम की मदद से गुमशुदा बच्चों को ढूंढने में मदद मिलती है। ठीक ऐसे ही लावारिस लाश की पहचान की जा सकती है। स्मार्टफोन को फेस से अनलॉक करने वाला फीचर इस टेक्नोलॉजी पर काम करता है।


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